हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी के द्वारा नई
राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई. इसे लाने के साथ ही देश में शिक्षा के पर व्यापक
चर्चा आरंभ हो गई है. शिक्षा के संबंध में स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य
की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है. इन्हीं चर्चाओं के बीच हम
देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियाँ रह गई थीं जिन्हें दूर करने
के लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नति को लाने की आवश्यकता पड़ी. इसके साथ ही क्या यह
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसका स्वप्न
महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद के साथ कई अन्य शिक्षाविदों ने देखा था?
सबसे पहले ‘शिक्षा’ क्या है इस पर गौर करना आवश्यक है. शिक्षा
का शाब्दिक अर्थ होता है- सीखने एवं सिखाने की क्रिया परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ
को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है.
जिसका कोई उद्देश्य होता है और जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा
व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है. शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि
कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है.
नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव
संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है. इस नीति द्वारा देश
में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है. इसके
उद्देश्यों के तहत वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% GER के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय
से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य रखा गया है.
बता दें कि अंतिम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी जिसमें वर्ष
1992 में संशोधन किया गया था. वर्तमान
नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर
आधारित है. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Eurolment Ratio-GER)
को 100% लाने का लक्ष्य रखा गया है.
इसके साथ ही नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा
क्षेत्र पर जीडीपी के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदुस्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान- नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक
संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को
शामिल करता है.
- पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) - 3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल
और ग्रेड 1, 2
- तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज (Prepatratory Stage)
- तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण - ग्रेड 6, 7, 8 और
- 4 वर्ष का उच (या माध्यमिक) चरण - ग्रेड 9, 10, 11, 12
- NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय
मिशन’ (National Mission on
Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है. इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये
आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा.
भाषायी विविधता का संरक्षण - NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन
के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है. इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये
प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है.
- स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य
प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा लेकिन किसी भी छात्र पर भाषा के
चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी.
शारीरिक शिक्षा
विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय
उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों
एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें.
पाठ्यक्रम और
मूल्यांकन संबंधी सुधार
इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक
विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा. कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम
में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी. ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान
और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT)
द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के
लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for college Education) तैयार की जाएगी.
छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को
ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा. इसमें भविष्य में समेस्टर
या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है. छात्रों की
प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन
केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी. इसके साथ ही छात्रों की प्रगति के
मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान
करने के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग
भी किया जा सकता है.
शिक्षण व्यवस्था से
संबंधित सुधार
शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का
पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति देने का
प्रस्ताव है. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक ‘शिक्षकों के लिये
राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards forTeachers- NPST) का विकास किया जाएगा. राष्ट्रीय अध्यापक
शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय
पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा. वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम
डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा.
उच्च शिक्षा से
संबंधित क्या है प्रावधान
NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया
है, इसके साथ ही देश के उच्च
शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा. NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम
में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम
में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री
या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस
डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की
डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक). विभिन्न उच्च शिक्षण
संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक
‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में
छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके. नई शिक्षा नीति
के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया.
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का गठन
नई शिक्षा नीति (NEP) में देश भर के उच्च शिक्षा
संस्थानों के लिये एक एकल नियामक यानी भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (Higher Education Commision
of India-HECI) की परिकल्पना की गई है. जिसमें विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने
हेतु कई कार्यक्षेत्र होंगे. भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा
को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय (Single Umbrella Body) के रूप में कार्य करेगा.
HECI के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार
निकायों का गठन होगा
1. राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National education Regulatroy Council-NHERC) : यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च
शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा. सामान्य शिक्षा परिषद (General Education Council
- GEC) : यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों
का ढाँचा तैयार करेगा अर्थात् उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा.
2. राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council - NAC) : यह संस्थानों के प्रत्यायन
का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर
आधारित होगा.
3. उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education Grants Council - HGFC)
: यह
निकाय कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा.
4. देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों
के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Reserach
Universities - MERU) की स्थापना की जाएगी.
विकलांग बच्चों के
लिए क्या है प्रावधान
इस नई नीति में विकलांग बच्चों के लिये क्रास विकलांगता
प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, सहायक उपकरण, उपर्युक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण, शिक्षकों का पूर्ण समर्थन
एवं प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक नियमित रूप से स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में
भागीदारी सुनिश्चित करना आदि प्रक्रियाओं को सक्षम बनाया जाएगा.
डिजिटल शिक्षा से
संबंधित ये हैं प्रावधान
एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी
मंच’’ (National Educational
Technol Foruem) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण, मूल्यांकन योजना एवं
प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा. डिजिटल शिक्षा
संसाधनों को विकसित करने के लिये अलग प्रौद्योगिकी इकाई का विकास किया जाएगा जो
डिजिटल बुनियादी ढाँचे, सामग्री और क्षमता निर्माण हेतु समन्वयन का कार्य करेगी.
पारंपरिक
ज्ञान-संबंधी प्रावधान
भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ, जिनमें जनजातीय एवं स्वदेशी ज्ञान शामिल
होंगे, को पाठ्यक्रम में सटीक एवं
वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा.
वित्तीय सहायता की
रुपरेखा क्या होगी
एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से
संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 इस नीति का उद्देश्य
असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति
समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था. इस नीति ने
प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" लॉन्च
किया. इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त
विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया. ग्रामीण भारत
में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी
के दर्शन पर आधारित "ग्रामीण विश्वविद्यालय" मॉडल के निर्माण के लिये
नीति का आह्वान किया गया.
पूर्ववर्ती शिक्षा
नीति में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की
आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की
आवश्यकता थी. शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के
लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी.
नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ
राज्यों का सहयोगः शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण
अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन
हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा. साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा
विरोध हो सकता है.
महँगी शिक्षाः नई शिक्षा नीति में विदेशी
विश्वविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है. विभिन्न शिक्षाविदों का
मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के
महँगी होने की आशंका है. इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा
प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.शिक्षा का
संस्कृतिकरणः दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से
सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है. फंडिंग संबंधी जाँच का
अपर्याप्त होनाः कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक
प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं.
वित्तपोषणः वित्तपोषण का सुनिश्चित
होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के
प्रस्तावित 6%खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है. मानव संसाधन का अभावः
वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा
नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा
हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को पूरा करने
के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव हेतु जिस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंज़ूरी दी है, अगर उसका
क्रियान्वयन सफल तरीके से होता है तो यह नई प्रणाली भारत को विश्व के अग्रणी देशों
के समकक्ष ले आएगी. नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा
का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है. 34 वर्षों पश्चात् आई इस नई
शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसका लक्ष्य 2025 तक पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3-6 वर्ष की आयु सीमा) को
सार्वभौमिक बनाना है.
हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी के द्वारा नई
राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई. इसे लाने के साथ ही देश में शिक्षा के पर व्यापक
चर्चा आरंभ हो गई है. शिक्षा के संबंध में स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य
की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है. इन्हीं चर्चाओं के बीच हम
देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियाँ रह गई थीं जिन्हें दूर करने
के लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नति को लाने की आवश्यकता पड़ी. इसके साथ ही क्या यह
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसका स्वप्न
महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद के साथ कई अन्य शिक्षाविदों ने देखा था?
सबसे पहले ‘शिक्षा’ क्या है इस पर गौर करना आवश्यक है. शिक्षा
का शाब्दिक अर्थ होता है- सीखने एवं सिखाने की क्रिया परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ
को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है.
जिसका कोई उद्देश्य होता है और जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा
व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है. शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि
कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है.
नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव
संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है. इस नीति द्वारा देश
में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है. इसके
उद्देश्यों के तहत वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% GER के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय
से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य रखा गया है.
बता दें कि अंतिम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी जिसमें वर्ष
1992 में संशोधन किया गया था. वर्तमान
नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर
आधारित है. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Eurolment Ratio-GER)
को 100% लाने का लक्ष्य रखा गया है.
इसके साथ ही नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा
क्षेत्र पर जीडीपी के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु
स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान
- नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है.
- पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) - 3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2
- तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज (Prepatratory Stage)
- तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण - ग्रेड 6, 7, 8 और
- 4 वर्ष का उच (या माध्यमिक) चरण - ग्रेड 9, 10, 11, 12
- NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है. इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा.
भाषायी विविधता का संरक्षण
- NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है. इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है.
- स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा लेकिन किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी.
शारीरिक शिक्षा
विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय
उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों
एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें.
पाठ्यक्रम और
मूल्यांकन संबंधी सुधार
इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक
विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा. कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम
में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी. ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान
और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT)
द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के
लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for college Education) तैयार की जाएगी.
छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को
ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा. इसमें भविष्य में समेस्टर
या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है. छात्रों की
प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन
केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी. इसके साथ ही छात्रों की प्रगति के
मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान
करने के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग
भी किया जा सकता है.
शिक्षण व्यवस्था से
संबंधित सुधार
शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का
पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति देने का
प्रस्ताव है. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक ‘शिक्षकों के लिये
राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for
Teachers- NPST) का विकास किया जाएगा. राष्ट्रीय अध्यापक
शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय
पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा. वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम
डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा.
उच्च शिक्षा से
संबंधित क्या है प्रावधान
NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया
है, इसके साथ ही देश के उच्च
शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा. NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम
में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम
में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री
या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस
डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की
डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक). विभिन्न उच्च शिक्षण
संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक
‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में
छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके. नई शिक्षा नीति
के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया.
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का गठन
नई शिक्षा नीति (NEP) में देश भर के उच्च शिक्षा
संस्थानों के लिये एक एकल नियामक यानी भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (Higher Education Commision
of India-HECI) की परिकल्पना की गई है. जिसमें विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने
हेतु कई कार्यक्षेत्र होंगे. भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा
को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय (Single Umbrella Body) के रूप में कार्य करेगा.
HECI के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार
निकायों का गठन होगा
1. राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National education Regulatroy Council-NHERC) : यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च
शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा. सामान्य शिक्षा परिषद (General Education Council
- GEC) : यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों
का ढाँचा तैयार करेगा अर्थात् उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा.
2. राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council - NAC) : यह संस्थानों के प्रत्यायन
का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर
आधारित होगा.
3. उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education Grants Council - HGFC)
: यह
निकाय कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा.
4. देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों
के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Reserach
Universities - MERU) की स्थापना की जाएगी.
विकलांग बच्चों के
लिए क्या है प्रावधान
इस नई नीति में विकलांग बच्चों के लिये क्रास विकलांगता
प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, सहायक उपकरण, उपर्युक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण, शिक्षकों का पूर्ण समर्थन
एवं प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक नियमित रूप से स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में
भागीदारी सुनिश्चित करना आदि प्रक्रियाओं को सक्षम बनाया जाएगा.
डिजिटल शिक्षा से
संबंधित ये हैं प्रावधान
एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी
मंच’’ (National Educational
Technol Foruem) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण, मूल्यांकन योजना एवं
प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा. डिजिटल शिक्षा
संसाधनों को विकसित करने के लिये अलग प्रौद्योगिकी इकाई का विकास किया जाएगा जो
डिजिटल बुनियादी ढाँचे, सामग्री और क्षमता निर्माण हेतु समन्वयन का कार्य करेगी.
पारंपरिक
ज्ञान-संबंधी प्रावधान
भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ, जिनमें जनजातीय एवं स्वदेशी ज्ञान शामिल
होंगे, को पाठ्यक्रम में सटीक एवं
वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा.
वित्तीय सहायता की
रुपरेखा क्या होगी
एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से
संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 इस नीति का उद्देश्य
असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति
समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था. इस नीति ने
प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" लॉन्च
किया. इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त
विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया. ग्रामीण भारत
में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी
के दर्शन पर आधारित "ग्रामीण विश्वविद्यालय" मॉडल के निर्माण के लिये
नीति का आह्वान किया गया.
पूर्ववर्ती शिक्षा
नीति में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की
आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की
आवश्यकता थी. शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के
लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी.
नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ
राज्यों का सहयोगः शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण
अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन
हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा. साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा
विरोध हो सकता है.
महँगी शिक्षाः नई शिक्षा नीति में विदेशी
विश्वविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है. विभिन्न शिक्षाविदों का
मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के
महँगी होने की आशंका है. इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा
प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
शिक्षा का
संस्कृतिकरणः दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से
सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है. फंडिंग संबंधी जाँच का
अपर्याप्त होनाः कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक
प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं.
वित्तपोषणः वित्तपोषण का सुनिश्चित
होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के
प्रस्तावित 6%खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है. मानव संसाधन का अभावः
वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा
नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा
हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को पूरा करने
के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव हेतु जिस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंज़ूरी दी है, अगर उसका
क्रियान्वयन सफल तरीके से होता है तो यह नई प्रणाली भारत को विश्व के अग्रणी देशों
के समकक्ष ले आएगी. नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा
का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है. 34 वर्षों पश्चात् आई इस नई
शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसका लक्ष्य 2025 तक पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3-6 वर्ष की आयु सीमा) को
सार्वभौमिक बनाना है.


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